श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन और गोरक्षपीठ

मुगल आक्रान्ताओं द्वारा मंदिरों को तोड़ कर नष्ट करने तथा/अथवा उनका स्वरूप बदले जाने की घृणित मानसिकता का दंश अन्य तमाम प्रमुख मंदिरों की ही भांति श्री राम जन्मभूमि मंदिर को भी झेलना पड़ा। मंदिर को तोड़ कर इसे 'बाबरी मस्जिद' का स्वरूप दे दिए जाने के विरोध में लगभग पांच सौ साल से चले आ रहे संघर्ष को धार दिया हमारे गोरखपुर की श्री गोरक्षपीठ/श्री गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन पीठाधीश्वर श्री दिग्विजय नाथ जी महाराज ने। वह कालखंड था अंग्रेजी शासनकाल में सन् 1934 से 1949 के बीच का जब उन्होंने श्री राम जन्मभूमि पर श्री राम मंदिर के निर्माण के लिए सतत संघर्ष किया। दिनांक 22-23 दिसम्बर 1949 के बीच की रात कथित विवादित ढांचे में आश्चर्यजनक रूप से जब श्री रामलला की मूर्ति के प्राकट्य की बात पूरे देश को सुबह पता चलती है तो उस समय महंत श्री दिग्विजय नाथ जी महाराज कुछ अन्य साधु-सन्तों के साथ वहां संकीर्तन कर रहे होते हैं।

श्री राम जन्मभूमि पर श्री राम मंदिर निर्माण की परिकल्पना का सपना संजोए श्री दिग्विजय नाथ जी महाराज के इस संकल्प को 28 सितम्बर 1969 को उनके ब्रह्मलीन होने के उपरान्त उनके शिष्य तथा अगले गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज ने अंगीकार कर लिया तथा जीवनपर्यन्त उक्त संकल्प की पूर्ति हेतु तत्पर रहे।

21 जुलाई 1984 को अयोध्या में "श्री राम जन्मभूमि मुक्तियज्ञ समिति" का गठन होने के समय महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज को इस समिति का अध्यक्ष चुना गया, तबसे अपने जीवनकाल के अंत तक अपने इस दायित्व का निर्वहन करते हुए श्री राम मंदिर के निर्माण की दिशा में किए जा रहे जनसंघर्ष की पूरी कुशलता व तत्परता के साथ उन्होंने अगुवाई की।

श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन के एक अन्य सशक्त हस्ताक्षर अयोध्या के संत श्री परमहंस रामचन्द्रदास जी महाराज, जिनके पूर्वाश्रम की बात करें तो वे समीपवर्ती बिहार के छपरा (सारण) जिले के मूल निवासी थे, ने मंदिर निर्माण आन्दोलन में महती भूमिका निभाई थी और वर्ष 1989 में श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए हुए प्रतीकात्मक भूमिपूजन में भूमि की खुदाई के लिए पहला फावड़ा महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज के साथ ही इन्होंने भी चलाया था।

आर या पार की जिजीविषा के साथ श्री राम मंदिर निर्माण की दिशा में चलाया गया आन्दोलन 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' के मार्गदर्शन, संतों के नेतृत्व तथा 'विश्व हिन्दू परिषद' की अगुवाई में तमाम बाधाओं को पार करता हुआ आज सफलता के सोपान पर आ पहुंचा है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, जनसामान्य तथा पूज्य संतसमाज के बीच अद्भुत समन्वय स्थापित करने का कौशल्य जिनमें था, ऐसे मनीषी श्री अशोक सिंहल जी का उल्लेख किए बिना श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन की चर्चा पूरी ही नहीं हो सकती । इस आन्दोलन को जन-जन का आन्दोलन बनाने में सूत्रधार की भूमिका निभाई थी श्री अशोक सिंहल जी ने।

श्री राम रथयात्रा निकाल कर श्री लालकृष्ण आडवाणी जी ने भी इस अनुष्ठान के प्रति सामाजिक चेतना जागृत की । 1989 में हुए प्रतीकात्मक शिलान्यास में प्रथम शिला रखी थी श्री कामेश्वर चौपाल जी ने, जो आज "श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र" न्यास के सदस्य भी हैं । कोलकाता के कोठारी बन्धुओं तथा उन्हीं सरीखे अन्य अनगिनत ज्ञात-अज्ञात बलिदानियों की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता।

हम बात कर रहे थे श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आन्दोलन से श्री गोरक्षपीठ के जुड़ाव की, तो उसकी निरन्तरता आज भी बनी हुई है । महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज के ब्रह्मलीन होने के उपरान्त उनके शिष्य व उत्तराधिकारी वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री योगी आदित्य नाथ जी महाराज ने अपने गुरु के संकल्प की पूर्णता हेतु उक्त आन्दोलन की मशाल जो थामी तो ईश्वरीय कृपा, संतों के आशीर्वाद तथा दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ लड़ी जा रही कानूनी लड़ाई की सुखद परिणति 'सत्य की विजय' के रूप में प्राप्त होने का सुयोग उनके मुख्यमंत्रित्व काल में प्राप्त हुआ । देश ही नहीं वरन् समस्त हिन्दु जनमानस चाहे वह विश्व में कहीं भी निवास कर रहे हों, के मानबिन्दु भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या के विकास हेतु प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में गोरक्षपीठाधीश्वर श्री योगी आदित्य नाथ जी महाराज द्वारा किए जा रहे प्रयास आज किसी से छिपे नहीं हैं।

दीपावली के अवसर पर पुण्यसलिला सरयू के तट पर अयोध्या में की जा रही दीपमालाओं की दिव्य ज्योति आज वैश्विक फलक पर अपनी पहचान बना चुकी है । अयोध्या के प्रति गोरक्षपीठ की भूमिका तथा प्रतिबद्धता को बखूबी निभा पाने में गोरक्षपीठाधीश्वर का प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान होना सोने पर सुहागा के समान सिद्ध हुआ है और गोरक्षपीठ की दृढ़ संकल्पना के अनुरूप वे अयोध्या के विकास हेतु प्राणपण से लगे हुए हैं। पूरा उत्तर प्रदेश आज चतुर्दिक विकास की तरफ अग्रसर है, लेकिन काशी तथा अयोध्या जैसे सांस्कृतिक व आध्यात्मिक केन्द्र पर विशेष ध्यान दिया जाना गौरव की बात है । पूज्य योगी आदित्य नाथ जी महाराज के कुशल नेतृत्व में आज अयोध्या तेजी से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता हुआ अपना खोया हुआ अतीत वापस पाने की दिशा में अग्रसर है।

द्वारा,
संजय कुमार राव 
सदस्य, प्रान्तीय प्रचार टोली 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, गोरक्ष प्रान्त

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